कैसे बना ये तारा?
लाइव साइंस की रिपोर्ट के मुताबिक नेचर एस्ट्रोनॉमी जर्नल में प्रकाशित शोध में बताया गया कि बिग बैंग के ठीक बाद तारे बनने लगे थे। शुरुआती तारों में तीन-चौथाई हाइड्रोजन और एक-चौथाई हीलियम था। इन भीमकाय तारों ने तेजी से अपना न्यूक्लियर ईंधन जलाया, बाहरी परत उतार दी और सुपरनोवा के रूप में फट पड़े। पहली पीढ़ी के तारों की राख से दूसरी पीढ़ी के तारे बने। यह चक्र लगातार चलता रहा। जीवन के लिए जरूरी ऑक्सीजन और जीवों की हड्डियों के लिए कैल्शियम का निर्माण भी इसी प्रक्रिया से हुआ। किसी तारे में इन तत्वों की मात्रा जानकर वैज्ञानिक उसकी उम्र जान सकते हैं।
यह भूसे के ढेर में सुई खोजने जैसा : चिती
शोध के मुख्य लेखक अनिरुद्ध चिती का कहना है कि बिग बैंग के बाद पैदा हुए तारे अरबों साल पहले मर चुके हैं। पहली पीढ़ी का कोई तारा अब मौजूद नहीं है, लेकिन दूसरी पीढ़ी के कई तारे खोजे जा चुके हैं। चिती ने कहा, हमारी आकाशगंगा में हर एक लाख तारों में से दूसरी पीढ़ी तारा खोजना भूसे के ढेर में सुई खोजने जैसा है।
प्रदूषण सबसे कम
वैज्ञानिकों ने यूरोपियन स्पेस एजेंसी के गैया स्पेस टेलीस्कोप के डेटा के जरिए ‘एलएमसी-119’ समेत 10 तारों की खोज की। इनमें से एलएमसी-119 का कॉस्मिक प्रदूषण सबसे कम था। इससे संकेत मिले कि यह सिर्फ सुपरनोवा से निकली गैस से बना था। यह दूसरी पीढ़ी का प्राचीन तारा है। इसमें हमारी आकाशगंगा के प्राचीन तारों के मुकाबले काफी कम कार्बन है।