PATRIKA OPINION त्वरित न्याय की अवधारणा को मजबूती देना जरूरी
कोर्ट का कहना था कि स्कूल का चयन करते समय अभिभावकों को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि उनके बच्चों को कौनसी सुविधाएं दी जा रही हैं और उनकी लागत क्या है? कोर्ट ने साफ कहा है कि सुविधाएं प्रदान करने का वित्तीय बोझ अकेले स्कूल पर नहीं डाला जा सकता।
बच्चे, स्कूल में क्या करने जाते हैं? इस सवाल का जवाब पढ़ाई के अलावा शायद ही कोई दूसरा होगा। स्कूल-कॉलेज चाहे सरकारी क्षेत्र के हों या फिर निजी क्षेत्र के, वहां जाने का मकसद शिक्षा ग्रहण का ही होता है। जिन अभिभावकों को बच्चों के लिए अतिरिक्त सुविधाएं चाहिए, वे निजी स्कूलों का चयन करते हैं क्योंकि सरकारी स्कूल आम तौर पर इन मामलों में काफी पीछे होते हैं। फीस से जुड़े एक प्रकरण में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक निजी स्कूल में अभिभावकों से लिए जाने वाले वातानुकूलन शुल्क की वसूली रोकने से जुड़ी जन हित याचिका को खारिज कर दिया।
कोर्ट का कहना था कि स्कूल का चयन करते समय अभिभावकों को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि उनके बच्चों को कौनसी सुविधाएं दी जा रही हैं और उनकी लागत क्या है? कोर्ट ने साफ कहा है कि सुविधाएं प्रदान करने का वित्तीय बोझ अकेले स्कूल पर नहीं डाला जा सकता। निजी क्षेत्र के प्रबंधन वाले स्कूल-कॉलेज से लेकर अस्पतालों और एयरपोर्ट तक में कई मदों में शुल्क वसूला जाता है। निश्चित रूप से ऐसे शुल्क कई बार मनमाने तरीके से भी वसूल किए जाते हैं। जहां तक निजी स्कूलों का सवाल है, अतिरिक्त सुविधाओं को देखते हुए ही अभिभावक इनका चयन करते हैं। हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते समय यह तर्क दिया है कि वातानुकूलन सुविधा के लिए पहले ही स्कूल ने अपने फीस चार्ट में अलग शुल्क का उल्लेख कर रखा है। ऐसे में अभिभावकों से स्कूल में वातानुकूलन सेवाओं की लागत वसूलनी ही होगी। महंगी शिक्षा हो या चिकित्सा, निश्चित ही आम आदमी की पहुंच से दूर होती हैं । सुविधाएं किसी भी स्तर की हों, उन्हें पाने के लिए अतिरिक्त वसूली स्वाभाविक है, बशर्ते वह तर्कसंगत हो।
दिल्ली हाईकोर्ट ने भी यह कहते हुए याचिका को खारिज किया था कि स्कूल यदि विभिन्न मदों में फीस वसूली का स्पष्ट उल्लेख करता है तो ऐसे शुल्कों के खिलाफ अदालत में जाना मायने नहीं रखता। कोर्ट का फैसला अपनी जगह हैं, लेकिन सवाल यह भी उठता है कि क्या इस तरह के हर छोटे-छोटे मामले क्या अदालतों में जाने चाहिए? निजी क्षेत्र मनमाना शुल्क नहीं वसूलें, इस पर निगरानी रखने और शिकायतों की सुनवाई के लिए कोई पृथक व्यवस्था की ज्यादा दरकार है। ऐसे मामले उपभोक्ता संरक्षण अदालतों के जरिए आसानी से हल किए जा सकते हैं। ये तमाम सवाल इसलिए हैं क्योंकि निचली अदालतों से लेकर शीर्ष कोर्ट तक मुकदमों का अम्बार, बेवजह की मुकदमेबाजी के कारण भी है। वैकल्पिक उपायों के जरिए समय पर न्याय की अवधारणा को मजबूती ही मिलेगी।
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